इतिहास और महत्व

‘अपराजिता’ की परिकल्पना और साहित्यिक यात्रा

‘अपराजिता’ की कल्पना की जड़ें महाविद्यालय के संस्थापक प्राचार्य डॉ. इन्द्रदेव सिंह की अद्वितीय दूरदर्शिता और सांस्कृतिक चेतना में गहराई से निहित हैं। उन्होंने केवल एक शिक्षण संस्थान की स्थापना नहीं की, बल्कि एक ऐसे साहित्यिक एवं बौद्धिक वातावरण की नींव भी रखी, जहाँ ज्ञान, सृजन और संवाद एक साथ पनप सकें।

उनके नेतृत्व में ‘अपराजिता’ की परिकल्पना एक सृजनशील आंदोलन का रूप ले सकी, जिसमें शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम और अंकतालिकाओं तक सीमित न रखकर, चिंतन, अभिव्यक्ति और संस्कृति का संवाहक माना गया।


पूर्व संपादन मंडल का ऐतिहासिक योगदान

 इस सृजनशील यात्रा को साकार रूप देने में पूर्व संपादन मंडल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. (श्रीमती) शीला सिंह के नेतृत्व में गठित संपादन समिति में निम्नलिखित विद्वानों का विशेष योगदान रहा:

  • डॉ. गंगेश प्रसाद द्विवेदी (पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष)

  • डॉ. नरेंद्र प्रताप सिंह (पूर्व अंग्रेज़ी विभागाध्यक्ष)

  • डॉ. रंजीत सिंह (पूर्व राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष)

  • डॉ. अशोक कुमार सिंह (पूर्व मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष एवं पूर्व प्राचार्य)

  • डॉ. उदय प्रताप सिंह (पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष एवं निदेशक, हिन्दुस्तानी अकैडमी, उत्तर प्रदेश)

इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप महाविद्यालय में रंगमंचीय गतिविधियाँ भी पुनर्जीवित हुईं और महाविद्यालय एक सांस्कृतिक परिसर के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

उदय प्रताप सिंह और डॉ. अशोक सिंह का साहित्यिक सशक्तीकरण

पत्रिका की साहित्यिक दिशा को और व्यापक बनाने में हिंदी साहित्य के विद्वान डॉ. उदय प्रताप सिंह का योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने अपने अनुभव, अनुशासन और रचनात्मक दृष्टि से पत्रिका को नया आयाम दिया तथा बाद के अंकों का सम्पादन किया ।

प्रसिद्ध नवगीतकार एवं पूर्व प्राचार्य डॉ. अशोक सिंह के सृजनात्मक नेतृत्व में ‘अपराजिता’ को भावनाओं की गहराई और सांस्कृतिक गरिमा से परिपूर्ण किया गया। उनके कार्यकाल में पत्रिका ने एक भावनात्मक जुड़ाव और काव्यात्मक ऊँचाई प्राप्त की।


साहित्य से प्रेरित भौतिक रूपांतरण

 ‘अपराजिता’ से उपजे सांस्कृतिक बोध ने डॉ. इन्द्रदेव सिंह को प्रेरित किया कि वे महाविद्यालय परिसर में स्थापित भीत को “मुक्ताकाश सोपान” का नाम दें — जहाँ मुक्त विचार, सांस्कृतिक आयोजन, और सृजनात्मक संवाद को मंच मिले।

 इसी भावभूमि पर महाविद्यालय के तालाब को “विमल सरोवर” नाम से संबोधित किया गया — जो आज भी एक सांस्कृतिक स्मृति-स्थल है।


एक जीवंत परंपरा की निरंतरता

 ‘अपराजिता’ का प्रत्येक अंक महाविद्यालय की उस परंपरा का प्रतीक है जो मानती है कि विचारशीलता, मौलिकता और चिंतन ही सच्चे अर्थों में शिक्षा के आयाम हैं।

 यह पत्रिका केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि ज्ञान और संस्कृति के संगम का प्रतीक है — जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा, दिशा, और स्मृति बनकर जीवित रहेगी।