भुड़कुड़ा की संत परम्परा

सिद्धपीठ भुड़कुड़ा, गाजीपुर: संत परंपरा की दिव्य धारा

सिद्धपीठ भुड़कुड़ा, गाजीपुर जनपद की पावन भूमि पर अवस्थित एक ऐसा अद्भुत आध्यात्मिक केंद्र है, जो केवल भक्ति और साधना का नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और चेतना का भी प्रतीक बन चुका है। यह स्थल न केवल श्रद्धा और संतपरंपरा की अमूल्य थाती है, बल्कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के संत बनने की जीवंत गाथा भी है।

आरंभ: एक हलवाहे से सिद्ध संत तक

सिद्धपीठ की स्थापना की कथा असाधारण है। यह मठ किसी राजपरिवार, कुलीन समाज या पूंजी के आधार पर नहीं, बल्कि एक साधारण हलवाहे बुलाकी राम के संतत्व में रूपांतरण की आध्यात्मिक यात्रा से आरंभ होता है।

बुलाकी राम एक सामान्य खेतिहर मजदूर थे, जो ठाकुर गुलाल सिंह के खेतों पर हल जोतने का काम करते थे। किंतु ईश्वर की योजना कुछ और ही थी। एक दिन दोनों को एक साथ आध्यात्मिक ज्ञान की अनुभूति हुई। बुलाकी राम ‘बुला साहेब’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए, और ठाकुर गुलाल सिंह स्वयं उनके शिष्य बनकर ‘गुलाल साहेब’ कहलाए।

इस अनूठे उदाहरण ने समाज को यह सिखाया कि आध्यात्मिकता जाति, पेशा या सामाजिक श्रेणी से नहीं, केवल साधना और सच्चे समर्पण से प्राप्त होती है

दशदिशाओं के सिद्ध संत

बुला साहेब से प्रारंभ हुई इस दिव्य परंपरा में अब तक लगातार दस सिद्ध संतों ने इस भूमि को तप, ज्ञान और भक्ति से सिंचित किया है। वे हैं:

  1. बुला साहेब
  2. गुलाल साहेब
  3. भीखा साहेब
  4. चतुर्भुज साहेब
  5. नरसिंह साहेब
  6. रामकुमार साहेब
  7. रामहित साहेब
  8. जयनारायण साहेब
  9. रामबरन दास जी
  10. रामाश्रय दास जी महाराज

यह गौरवमयी परंपरा आचार्य रजनीश (ओशो) जैसे विचारक को भी प्रभावित किए बिना न रह सकी। उन्होंने लिखा है –

“यह धरती पर एकमात्र स्थान है जहाँ एक साथ दस सिद्ध संत हुए हैं।”

आज सिद्धपीठ की परंपरा का नेतृत्व श्री महंथ शत्रुघ्न दास जी महाराज कर रहे हैं, जो इस पीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर हैं। उनका संयमित नेतृत्व, विनम्रता और जनसंपर्क सिद्धपीठ को आधुनिक युग की चुनौतियों से जोड़ते हुए भी परंपरा की जड़ों से जोड़े हुए है।

शिक्षा और समाज सेवा की ज्योति

इस सिद्धपीठ ने केवल आध्यात्मिक साधना को ही नहीं, बल्कि सामाजिक और शैक्षिक चेतना को भी नया आयाम दिया है। इसी उद्देश्य से संस्कृत विद्यालय, श्री महंथ रामबरन दास इंटर कॉलेज, वर्ष 1972 में सिद्धपीठ के नाम पर “श्री महंथ रामाश्रय दास स्नातकोत्तर महाविद्यालय” की स्थापना हुई। यह संस्थान न केवल गाजीपुर जनपद के पिछड़े क्षेत्रों को शिक्षा की रोशनी देने का कार्य कर रहा है, बल्कि युवाओं में मूल्यनिष्ठता, अनुशासन और आत्मगौरव का भी संचार कर रहा है।

धार्मिक आयोजन और आस्था का केंद्र

यहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी, गुरुपूर्णिमा, नवरात्रि, शिवरात्रि आदि पर्वों पर भव्य धार्मिक आयोजन होते हैं। देशभर से भक्तगण यहाँ साधना, दर्शन और सेवा के लिए आते हैं। यहां की यज्ञशाला, गौशाला, सत्संग सभागार, और ध्यान कक्ष आध्यात्मिक जीवन के विविध पक्षों को समाहित करते हैं।

नैतिकता और समरसता की प्रेरणा

इस सिद्धपीठ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह समरसता का प्रतीक है। यहाँ किसी जाति, वर्ग या आर्थिक स्थिति का भेद नहीं किया जाता। हर भक्त, हर आगंतुक को समान भाव से स्वीकार किया जाता है। यही इसकी आध्यात्मिक शक्ति और सामाजिक प्रासंगिकता को सिद्ध करता है।

परंपरा और नवाचार का संगम

जहाँ एक ओर सिद्धपीठ हजारों वर्षों की संत परंपरा से जुड़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर यह समयानुसार स्वयं को तकनीकी और शैक्षणिक नवाचारों से भी जोड़ रहा है। डिजिटल युग में यह पीठ अपने शिक्षण संस्थान, सत्संग, और जनसेवा को ऑनलाइन माध्यमों से भी पहुँचाने का प्रयास कर रही है।


सिद्धपीठ भुड़कुड़ा केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक तप, सामाजिक चेतना, और शिक्षा के समन्वय का एक अद्वितीय उदाहरण है। यहाँ की संत परंपरा यह सिखाती है कि साधना की राह किसी विशेष वर्ग की बपौती नहीं, बल्कि कर्मशील, समर्पित और विवेकशील आत्मा के लिए खुला द्वार है।

श्री महंथ रामाश्रय दास जी और अन्य नौ सिद्ध संतों की यह परंपरा आज भी जीवंत है — वर्तमान पीठाधीश्वर श्री महंथ शत्रुघ्न दास जी के सान्निध्य में — जो इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा, साधना और सेवा का प्रतीक बनाए रखने में सतत प्रयत्नशील हैं।